हिंदी साहित्य में नारी का योगदान !


हिंदी साहित्य में नारी का योगदान :- नारी का जीवन बहुत ही संघर्ष से विरत है महिला साहित्यकार के लिए सबसे पहले बाहरी संदर्भो में उसका आंतरिक समय होता है जहां वो जीती है और सांस लेती है ,और वही दूसरी और होती है समय की चुनौतियां जिससे वो बिलकुल परे होती है उनके जीवन वे सृजन के बीच अनवरत की स्थिति बनी रहती है ,उनकी राह आसान नहीं है उनकी राह में बहुत सी विचारधाराएं वे दुविधाएं है!

साहित्य जब तक मौखिक परम्परा का हिस्सा था तब तक लेखन में स्त्रियों का योगदान बराबरी के स्तर पर रहा ,परन्तु इतिहास के पन्नो में उनका जिक्र  भी नहीं किया गया क्योंकि उन्हें कोई जगह नहीं मिली ,अगर नारी का योगदान का मूल्यांकन साहित्य में करना हो तो वह  किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं है !

आज के दौर में महिलाओं ने पुरुष के मुकाबले साझेदारी निभाई है ! महिलाओं के अंदर बढ़ती चेतना और जागरूकता ने पारम्परिक छवि को तोडा है !!
देखा जाये तो साहित्य में नारी की भागीदारी जिस तेजी से हो रही है उसे देखते हुए नारी की अभिव्यक्ति की सामर्थय पर हैरान होने वाली कोई बात नहीं रहेगी !!

भक्तिकाल में कई कवयत्रियों का उल्लेख  कही कही  देखने को भी मिलता है !
जैसे कि  गंगा ,गौरी ,सीतासुमति, शोभा, प्रभुता, उमा, कुंवरि, उबीठा, गोपाली, गणेश देवरानी, कला, लखा, कृतगढ़ी, मानुमती, सुचि, सतभामा, जमुना, कोली, रामा, मृगा, देवा, देभक्तन, विश्रामा, जुग जेवा कीकी, कमला, देवकी, हीरा, झाली,हरिचेरी पोषे भगत कलियुग युवती जन भक्त राज महिमा सब जाने जगत।'

इन कवित्रियों ने कविताएं लिखी थी परन्तु इनकी कवितायेँ कहाँ  गयी ये कोई नहीं जानता भक्ति काल की समस्त कवियित्रियाँ स्त्री काया जनित वेदना और विद्रोह को अभिव्य्क्त करती है चाहे वो मीरा हो या लल्लेश्वरी भक्ति में भिगोई इनकी दमनकारी व्यवस्था के प्रति आक्रोश को सेहज ही पहचाना जा सकता है !!

परन्तु दुःख की बात ये है की इनमे से कुछ कवयित्रियों की जानकारी है और कुछ कवयत्रियाँ मठवाद  हो गयी ! उनके बारे में या उनकी लिखी कविताओं के बारे में कही भी देखने को नहीं मिलता है !!
जहां मीरा के लिखे पद थे तो उन्हें शायद इसलिए भी मिट्टी में दबाना संभव नहीं था क्यूंकि उनके पद राजस्थान वे अन्य नीची जातियों के घर घर  में गाये जाते थे  !!और यही हाल लल्लेशवरी का भी था.. वह कश्मीर से थी और घर घर मे उनकी कविताएँ गाई जाती थी।जिन कविताओं का उल्लेख हमे देखने को नहीं मिला !

 कबीर के काल में लोई भी कविताएं लिखा करती थी परन्तु कहाँ है लोई की रचनाएं  किसी को नहीं पता कबीर को संकलित करने वाले अगर चाहते तो लोई की रचनाओं को भी संकलित कर सकते थे !!
तुलसीदास  के साथ-साथ रत्नावली भी कवि थी, पर हिन्दी साहित्य के अभी तक के इतिहास में उनके अस्तित्व को नहीं दर्ज किया गया है
भक्ति काल मे खास बात यह है कि पुरुष कभी स्त्री रुप मे आराधना करते नज़र आते थे तो कभी वे पुरुष हो जाते थे.हैरान कर देने वाली बात है कि किसी पुरुष कवि के विवरण के साथ उससे सम्बन्धित स्त्री का उल्लेख कर दिया जाता था।

उदाहरण के लिये रीतिकाल मे घनानन्द और सुजान का उदाहरण लिया जा सकता है .. जिस रचना मे घनानन्द का नाम है वह तो उनकी है ही जिसमे सुजान का नाम है वह भी घनानन्द के नाम से ही है.. पद से लिंग निर्धारण नही होता .. ऊपर से आचार्य रामचन्द शुक्ल तर्क देते है कि चूंकि अपनी पूर्व प्रेयसी से घनान्द को अत्यंत प्रिय रही होगी इसलिये वह उसका मोह ना छोड पाए.
आज  साहित्य की विभिन्न विधाओं में महिलाओं से कोई क्षेत्र अछूता नहीं रहा !

महिला लेखन की सबसे बड़ी सीमा यह भी है क़ि वे आज भी पुरुष सत्तात्मक समाज में अपनी बेबाक अभिव्यक्ति का साहस  नहीं जुटा पायी है !!
उनका दबा हुआ स्वर रुढयों की चादर ओढे हुए है। दबा हुआ स्वर यह भी उभरता रहा है क़ि स्थापित लेखक अपनी आत्ममुग्धा और अपनी सिद्धहस्ता पूर्वाग्रह और खेमेबाजी के चलते नारी के लेखन को ख़ारिज कर अपनी स्तरहीन रचनाओं को स्थापित करा लेते है !!

आजादी की लड़ाई के समय जो स्वर साहित्य में उभरा उसमे देशकालिक परिस्थितियां और देश प्रेम की अभिव्यक्ति साफ़ लक्षित होती है महादेवी वर्मा , सरोजिनी नायडू ,सुभद्रा कुमारी चौहान ,उषा देवी मिश्रा आदि कई लेखिकाओं ने अपने समय को अभिव्यक्ति दी !
और उनके प्रति लिखी गयी कविताएं या अन्य सशक्त लेखन का योगदान हिंदी साहित्य को प्राप्त हुआ !!

स्वतंत्रता के बाद नारी लेखन में मुक्ति के स्वर उभरे वह नारी जिसे पुरुषों ने सती सावित्री का झोला पहना रखा था ! नारी एक स्वप्न लोक में बसी एक खूबसूरत देह थी , एक ऐसी देह जिसके अंदर कोई भावना नहीं होती ,एक बेजान देह जो कभी किसी चीज की आशा नहीं करती !!
अपने अंदर भावनाओं को छुपा कर रखती है !!जिसे पुरुष प्रधान बनकर स्त्री को अपने इशारों में नचा सकता है !

नारी भावनाओं की यह अभिव्यक्ति जो कई सदियों से भीतर ही भीतर छटपटा रही थी और आज नारी लेखन में ही अभिव्यक्त हुई !
क्यूंकि नारी ने ही नारी की पीड़ा को समझा और नारी ने ही उन्हें समझकर उनकी पीड़ा को शब्द दिए ! जो की एक पुरुष  नहीं समझ सकता नारी ने ही उनके जीवन की समस्त व्यथा को लिखा !
मन्नू भंडारी , उषा प्रियवंदा चंद्र किरण सौनरिक्सा  शशिप्रभा शास्त्री का लेखन नारी अस्मिता को तलाश है,

आज के समय में जहां तक देखा गया है की भारत में महिलाओं की स्थिति ने पिछले कुछ सदियों में कई बड़े बदलावों का सामना किया है महिलाओं ने प्राचीन काल में पुरुषों के साथ बराबरी के स्तरीय जीवन और सुधारकों द्वारा सामान अधिकारों को बढ़ावा दिए जाने तक भारत में महिलाओं का इतिहास काफी गतिशील रहा !!

नारी साहित्य लेखन एक और स्वातः सुखाय है तो दूसरी ओर जन हिताय है नारी साहित्य इस परिवर्तन युग का शुभचिंतक है।
यद्यपि महिला लेखन आज स्पर्धा के युग में चुनौती है। फिर भी उसे हर स्थिति का सामना करने में उसे किसी वैसाखी की जरूरत नहीं। अपितु वह स्वयं मार्ग ढूंढ स्वयं अपने हस्ताक्षर बना रही है।
अत्यंत सयंत व शालीन बने रहकर सृजन करना भी एक चुनौती है। महिला रचनाकार ऐसा करती आ रही हैं। निर्भयतापूर्वक सोचना और लिखना होगा आज की यह जरूरत है।

हम चुनौतियों में तब ही सफल हो सकती हैं जब हम अपने सामाजिक सरोकार के हिसाब से किसी न किसी रूप में एक्टिविस्ट हो साथ में घर गृहस्थी भी सफलता से निभाएं! सृजन की शक्ति उसके पास है जो उसके लेखकीय सरोकार को नवीन अभिव्यक्ति की क्षमता देती आई है और देती रहेगी।
इतना ही कहूँगी कि नारी धीरे-धीरे आत्मबोध अनुप्राषित हुई है। फिर भी वह अपने ढंग से प्रतिष्ठित होने के लिए संघर्षशील रही है। इसलिए विरोध-अवरोध तिरस्कार-बहिष्कार को नकारते हुए उसे आगे आना होगा। तब ही समाज और राष्ट्र के प्रति अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकती है और अपनी सार्थकता को सिद्ध भी।

हमें ठोस चिन्तन का प्रमाण देना है व इस दंभ से बचना होगा कि चूंकि स्त्री है अतः स्त्री समस्याओं या भावनाओं को वही बेहतर समझ सकती है। वह सृजन के क्षेत्र में पैर रख रही है न कि किसी रणक्षेत्र में। नारी मुक्ति का संघर्ष लम्बा है और इसे मुख्यतः स्वयं नारी को लडना है। लेकिन यह लडाई पुरुष वर्ग के विरुद्ध न होकर व्यवस्था के अन्तर्विरोधों व पुरुष प्रधान समाज से निथरे नारी विरोधी अवमूल्यों के प्रति होनी चाहिए! समाज व अपनी संस्कृति से जुडी वर्तमान परिवेश की चुनौतियां स्वीकार करके ही महिला सृजन सफल हो रहा है और होगा!

समसामयिक काल में नारी समता की एक नई चेतना भारतीय समाज में व्याप्त हुई हैं! बहुत प्रसन्नता की बात है कि स्त्री लेखन की चर्चा अब हर जगह होने लगी है। यह निश्चय ही महिला रचनाकारों के बढते महत्त्व को रेखांकित करता है।

आज के दौर में भारतीय संस्कृति में नारी को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है वह शिव भी है और शक्ति भी वह वो सभी कार्य कर सकती है जो एक पुरुष करता है वह एक पुरुष के समान उससे अधिक कार्य कर सकती है और करती भी है !!




2 comments:

  1. बिल्कुल सटीक लिखा है आपने | महिलाओं को हमने उड़ने को पर तो दिया है पर उसे हम उड़ने नहीं देते | हमने उसे क़ैद कर रखा है |

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    1. ji thank you sach to ye hai ki log dusri ldkiyon ko dekhkr brace keh dete hai but apne ghar ki bahu betiyon ko wo aajadi nhi dete hai jo wo karna chahti hai ..

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