पारिवारिक जीवन का सही महत्व

जिस तरह से एक नवजात शिशु इस जीवन में अपनी आँखे खोलता है और नए सुनहरे भविस्य की और देखता हुआ , बिना कुछ जानते पहचानते हुए , अपने नन्हे नन्हे हाथों से चीजों को स्पर्श करता है , और अपनी प्यारी प्यारी आंखों से लोगों को खिलोनो को देखता हुआ , चीजों को जानने की कोशिश करता है , फिर अपने नन्हे नन्हे कदमो को आगे बढ़ता है , और धीरे धीरे सब कुछ सीखने लगता है , समझने लगता है ,  कि कौन माता , है कौन पिता है , और कौन भाई है कौन बहन कौन अच्छा है और कौन बुरा है , सभी को धीरे धीरे समझने लगता है , माता पिता खुद ही बच्चों को यह शिक्षा देते हैं कि गलत लोगों से दूर रहो , और अच्छे लोगों के साथ रहो , बुरी बातों  से दूर रहो और अच्छी बातों को अपनाओ , अच्छे लोगों कि बात सुनो , 

                                                                             और जिस तरह से एक पेड़ अपने पत्तों से छाया देता है , फल देता है , खुद धुप में जलता है , और बिना किसी उम्मीद के उसी तरह से माता पिता का फर्ज होता है, बच्चों को सींचना , और उनको सही राह पर चलाना , उन्हें सही रस्ते बताना , जैसे कि जब भाई गलत होता है तो कहते हैं भाई सुधर जाएगा तुम उसके जैसे मत बनो , उससे दूर रहो , पिता शराब पिए तो कहते हैं कि पिताजी से थोड़ा दूर रहो ताकि उनके जैसे तुम न करने लगो , इसी तरह से अगर कोई पडोसी या घर में लड़ाई झगड़े हो रहे होते हैं , लोग एक दूसरे को उलटा बोल रहे होते हैं तब भी वहाँ से बच्चों को दूर रखा जाता है , ताकि बच्चो पर बुरा असर न पड़े , और बच्चे बुरी संगत से दूर रहें , 

उस समय माता पिता अपने बच्चों को हर मुसीबत से बचाते हैं और बुरी संगति से दूर करते हैं , लेकिन एक समय ऐसा भी आता है कि बच्चे को खुद से चलना पड़ता है , अपने कदम आगे रखने पड़ते हैं , हर अच्छी बुरी परिस्थिति से गुजरना ही पड़ता है , 

और अपने फैसले लेने पड़ते हैं , जिस तरह से माता पिता हमेशा बच्चे के साथ नहीं चल सकते , उनके स्कूल , कॉलेज में उनकी नौकरी में उनके साथ आ जा नहीं सकते , और उन्हें अच्छे बुरे की पहचान होने लगती है , उन्हें सही गलत का अंतर समझ में आने लगता है , उसी तरह से हम सभी का जीवन होता है , हमे एक समय पर अपने फैसले खुद लेने होते हैं , 

जब एक शिशु जन्म लेता है , तो वो अपने माता पिता के सहारे होता है , घर के अंदर , जब वो स्कूल या कॉलेज  जाता है , तो वो दोस्तों का सहारा लेता है , और अध्यापक से सीखता है , और जब वो नौकरी की तलाश करता है , तो वह बिलकुल अकेला होता है , उसे अपने करियर की उड़ान खुद से भरनी होती है , और बाद में माता पिता शादी करवा कर साइड हो जाते हैं चाहे रिस्तेदार हों या फिर कोई भी सब एक लड़के और लड़की को बंधन में बाँध कर अपने अपने परिवार अपने अपने काम पर ध्यान  देने लगते हैं , 

और फिर वह दोनों अपने जीवन के चलन को आगे बढ़ाते हैं और अपने जीवन में अच्छा बुरा सब देखते हैं , जब कुछ गलत होता है तो बड़े साथ देते हैं , समझाते है , समझते हैं , और कभी कोई बाहर वाला लड़ने लगता है तो भाई भाई एक दूसरे का साथ देते हैं , 

भाई बहन एक दूसरे का होंसला बढ़ाते हैं , 

अगर कोई दुःख तकलीफ होती है परिवार में तो  एक दूसरे का साथ देना होता है , एक दूसरे के दर्द को समझना होता है , एक दूसरे की तकलीफ में सहारा बनना होता है , एक दूसरे की बुरी परिस्थितियों में सहारा बनना होता है , 

हर परेशानी का सामना मिलकर करना ही परिवार का असली महत्व होता है , यही जीवन है , यही जीवन का चक्र है , हम सब छोटे बच्चे से लेकर अपने आखरी समय तक जीवन के सुख और दुःख का सामना करते हैं , कभी ख़ुशी में मुस्कुरा लेते हैं , तो कभी दुःख में रो भी देते हैं , लेकिन जब पूरा परिवार साथ होता है , बाहर के दुःख से घिरा हुआ इंसान हमेशा घर के माहौल में शुकुन ढूंढता है , और घर में ख़ुशी ढूंढता है और घर में ख़ुशी परिवार से आती है , और परिवार में खुशियां अच्छी बातों से आती है , जब सब मिलकर एक साथ खाना कहते हुए , सही बातें करते हैं , हसी मजाक करते हैं , और एक दूसरे को गलत नहीं बोलते , एक दूसरे पर ऊँगली नहीं उठाते , कोई किसी को ऊंच नीच नहीं दिखाता बल्कि , हर तरह से एक दूसरे को समझते हैं , एक दूसरे को देखकर खुश होते हैं , एक दूसरे की कमी को महसूस करते हैं , चाहे वो माता पिता हो , भाई हो , बहु हो , बेटी हो , दामाद हो , कोई भी हो सभी का मिल जल कर रहना ही , एक दूसरे की खुशियों का ख्याल रखना ही जीवन का लक्ष्य होना चाहिए , तभी एक परिवार बनता है जब सबको समानता मिलती है , सबको एहमियत दी जाती है !!



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