मेरी माँ

जानती हूँ अब सब अधूरा है , 
तुम्हारे बिन अब कहाँ जीवन पूरा है ,
एक आदत ही तो थी जो में इतना बिगड़ी हुई थी 
पर न जाने क्यों वो बिगड़ना मुझे पसंद था 
सुबह सुबह कि वो दांत ही तो थी 
जो मुझे रोज सुन्ना पसंद था 
जब भी में लेट तक सोती थी तो कहती थी कि 
आज ऑफिस नहीं जाना क्या 
और में एक डैम से उठाकर कहती थी कि जाना है न 
पर थोड़ा सा लेट जाना है 
और रविवार के दिन थोड़ी देर तक सोने देना 
और फिर १० बज जाने पर पापा को दांत लगाना 
ये सब आदते बुरी ही सही पर तुम मेरे साथ तो थी 
मुझसे दूर न थीं , काश वो पल फिर लोट आते 
मम्मी तुम फिर वही डाँट कर मुझे उठाते !!
काश तुम लोट आते , मुझसे इतना दूर न जाते 
काश तुम लोट कर आते !!

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