इंसानियत कोई जाति या धर्म नहीं !!
इंसानियत कोई जाति-धर्म नहीं !!
कभी कभी हम पूरा जहां घूम लेते हैं लेकिन हमे अपनी मंजिल नही मिलती , और वो हमसफ़र नहीं मिलता जो हमे वर्षों से चाहिए होता है , और वो आसपास ही होता है हमारे !!
हम सभी जितना सोचते हैं उससे कही ज्यादा सोचते हैं लोग हमारे बारे में , पर वो सही सोच रखते हो ये जरुरी तो नहीं कुछ इसी तरह की सबसे अलग सोच रखने वाली थी मिथ्या में सुनाने जा रही हूँ मिथ्या की कहानी जो एक छोटी कास्ट में पैदा हुई है और जाति -धर्म के समाज में रहकर ही अपनी एक अलग दुनिया के बारे में सोचती है , और कोशिश करती है कुछ अलग करने की ,
बचपन में ही अगर पढ़ाई नहीं की होती तो आज इस समाज को अपना लेती और वही करती जो सिर्फ एक घर तक सीमित है , न सपने होते न सोच होती , न सुधार होता , न परवाह होती , न जाति क्या होती है धर्म क्या होता है , ये जानती , लेकिन मम्मी पापा ने मुझे एक ही घर तक सिमित नहीं रहने दिया , उन्होंने तो अपने बच्चो को उड़ना सिखाया , पंख कैसे फैलाते हैं ये सीख दी , आसमान में बाज ही नहीं उड़ता बल्कि चिड़िया भी उड़ती हैं , ये समझाया , अच्छा क्या है बुरा क्या है इसकी पहचान बताई है , जब कोई गिर जाए तो उसका मजाक नहीं बनाना चाहिए बल्कि उसकी मदद कर उसे उठाना चाहिए ,बस यही बचपन से सिखाया है और हमारे मम्मी पापा ने हमे इंसानियत सिखाई है !!
बचपन में जब स्कूल में नाम लिखा तो बहुत जिद की थी स्कूल जाने की , पापा स्कूल छोड़ने गए ,वहाँ पहुंची तो मिथ्या ने देखा की उसके जैसी बहुत सारी लड़कियां क्लास में खेल रही हैं , और क्लास में कोई फ्रॉक पहने हुए है ,कोई शर्ट पहने हुए है , कोई गोरा है कोई काला है ,
किसी की दो चोटी हैं तो किसी की एक चोटी , सभी अलग अलग नजर आ रहे थे ,
अब घर जाकर मिथ्या ने अपनी मम्मी को बताया कि मम्मी वहां पर बहुत सारे बच्चे थे और सब मस्ती कर रहे थे ,सबने अलग अलग तरह के कपडे पहने हुए थे , किसी ने अच्छे तो किसी ने बुरे , किसी ने नये तो किसी ने पुराने में भी कल नयी फ्रॉक पहनकर जाउंगी , दूसरे दिन मिथ्या की मम्मी ने उसे एक नयी फ्रॉक पहनाकर स्कूल भेजा , मिथ्या को अपनी फ्रॉक बहुत अच्छी लग रही थी , वो सोच रही थी कि में भी आज घूम घूम कर सबको फ्रॉक दिखाउंगी , जैसे ही वो क्लास रूम के अंदर गयी उसने देखा कि सारे बच्चे एक ही कलर की ड्रेस पहने हुए हैं , बस उसमे से कुछ ही बच्चे थे जो कि घर की ड्रेस में थे ,
मिथ्या को समझ नहीं आया कि ऐसा क्यों है , तभी एक टीचर वहाँ आते हैं और सभी बच्चो को अपना नाम बताते हैं , और कहते हैं कि बच्चों यहां कल से प्रार्थना होगी , और आप सभी को एक जैसी ड्रेस पहन कर आना है , और दो चोटी बांधकर , रिब्बन लगाकर , आना है , पेरो में जूते पहनकर आना है !
मिथ्या ने अपनी मम्मी को बताया कि मम्मी वहाँ सभी एक जैसे कपडे पहनेगे और एक जैसे जूते , एक जैसी चोटी बनाएंगे , तो मम्मी ने कहा कि हाँ बेटा वो स्कूल है वहां सभी एक समान होते हैं , इसलिए सभी को बराबर बनाया जाता है, कोई गरीब नहीं कोई अमीर नहीं होता वहाँ सबकी किताबें , ड्रेस सभी समान होते हैं !!
मिथ्या ने किताबें पढ़ी कहानियां पढ़ी , सबको एक जैसी किताबें मिली , कुछ सहेलियां बनी , और एक साथ खेलने लगे , घर आती तो सभी बच्चों के साथ खेलती , स्कूल जाती तो सबके साथ खाना खाती , कोई अपनी मम्मी के हाथ का खाना लाता तो कोई , अपनी भाभी के , कोई बहन के, और सभी मिलकर एक दूसरे का टिफिन खाते, और बताते कि आज मेरे घर में मम्मी ने ये बनाया है ,
जब पढ़ाई होती तो सबके लिए टीचर एक ही पाठ पढ़ाते , सब एक ही पेज खोलते , और वही पढ़ते जो टीचर सबको पढ़ाते थे , कोई अलग नहीं था , किसी एक बच्चे की पिटाई नहीं लगती बल्कि जो गलत होता उसकी पिटाई लगती थी !!
मिथ्या ने १२ सालों तक सभी तरह के बच्चों के साथ पढाई की , खाना खाया , खेली कूदी और बड़ी हुई , अब माता पिता तो शादी करने के लिए खड़े हो गए , लेकिन मिथ्या ने कहा कि अभी में पढ़ना चाहती हूँ , कई लोग खिलाफ हुए , कि संभालना तो चूल्हा चौका है तो क्या करेगी और पढ़कर , लेकिन मिथ्या पढ़ना चाहती थी , बहुत मुश्किल से कॉलेज में एडमिशन लिया ,घर वाले नाराज भी हुए लेकिन उसे पढ़ें था , लोग रूठे भी और फिर मान गए ,जब मिथ्या पहली बार कॉलेज गयी तो उसने देखा कि कॉलेज में लड़के लड़कियां सभी अच्छे अच्छे कपडे पहने हुए , किताबे हाथ में लिए हुए , और एक दूसरे से बातें करते हुए , नजर आ रहे है ,
मिथ्या ने भी दोस्ती की एक दूसरे के साथ उठना बैठना , खेलना , मस्ती करना , पढ़ना लिखना सब कुछ देखा , और माहौल में ढलती गयी ,
किताबें पढ़ती , पुरानी सोच लिखी हुई बातें पढ़ती तो यकीन नहीं होता था कि समाज में कोई ऐसा भी करता है क्या , बचपन में ही शादी कर देना , पति मर जाने पर दुल्हन को भी जला देना , या विधवा बनाकर उसे समाज के लायाक न समझना ,छोटी जाति के लोगों को जूतों के समान समझना , अमीर घर के लोगों का गरीब घर के लोगों पर जुर्म करना , ऊंच नीच , मंदिरों में न जाने देना , ये सब मिथ्या ने पढ़ा और अपनी मम्मी से पूछा कि मम्मी ये सब क्या होता है , और क्या ये सब सच में होता था ,
तब मिथ्या की मम्मी ने बताया कि बेटा हम जिस जाति से ताल्लुक रखते हैं वो समाज में छोटी जाति कहलाती है , हमे ऊँचा दर्जा नहीं दिया जाता था मिथ्या ये सब सुनकर परेशान होती है , लेकिन सब भूल जाती है , दोस्तों में रहकर , और सबके साथ खाना खाने लगती है !!
तभी वो किताबें पढ़ती है हमारे अधिकार हमे कैसे मिले और किसने दिलाए ये पढ़ती है , भीम राव आंबेडकर जो कि एक छोटी जाति के थे और उन्होंने काफी आवाज उठाई और किताबें पढ़कर इस देश को बराबर का सम्मान दिलाया , जिसकी वजह से देश को आजादी का असली अधिकार मिला सभी को एक ही समाज में रहने का अधिकार मिला !!
मिथ्या ने किताबों में जाति धर्म के ऊपर मास्टर क्लास की ताकि वो ये सभी समझ सके कि किसने ये धर्म और जाति बनाई है , और उसने पढ़ा और उसके अधिकारों के बारे में भी जाना , सभी को यही बातें समझाती और खुद भी सोचती कि उसके साथ या उसने कभी किसी जाति धर्म को अपमानित होते हुए सच में नहीं देखा , उसने सोचा कि पहले कि तरह अब ये सब नहीं रहा है , सब बदल गया है , क्यूंकि सभी इंसानियत की कदर करते हैं , सब एक साथ खाना खाते हैं , एक साथ हँसते हैं बोलते हैं , घूमते हैं , एक दूसरे के साथ रहते हैं , एक दूसरे के घर आ जा सकते हैं , किसी को भी अपना धर्म बदलने का अधिकार है , और किसी भी जाति में शादी करने का अधिकार प्राप्त है ,
जैसे ही collage पास किया मास्टर किया और नौकरी ज्वाइन की तब भी सब मिल जुल कर रहते ,मिलकर ही सब करते , एक दूसरे की जरूरत होती तो एक दूसरे से पूंछते , एक साथ वही खाना पीना मस्ती करना , घूमना फिरना , ज़िन्दगी को एक -दूसरे के साथ जीना सीखा था ,
कुछ दिन बाद मिथ्या की ज़िन्दगी एक ऐसे मोड़ पर जाती है जहां से एक नयी शुरुआत होती है , मिथ्या की शादी की बातें चलती हैं , मिथ्या का एक दोस्त जो बहुत दिनों बाद मिला होता है और दोनों एक दूसरे के साथ बातें करते हैं , एक दूसरे के साथ समय बिताते हैं बिलकुल एक जैसी सोच रखने वाले होते हैं , बस कहीं कहीं दोनों की बातें नहीं मिलती जुलती लेकिन फिर भी दोनों एक दूसरे को समझा लेते कहीं न कहीं दोनों एक दूसरे को पसंद भी करने लगते हैं लेकिन कहते नहीं है , जताते नहीं है , ये लड़का बिलकुल मिथ्या के जैसा ही था जो हर बात को समझता था उसको सुनता था ,लड़का भी बहुत पसंद करता है , और दोनों एक दूसरे को समझने लगते हैं पसंद करने लगते हैं ,
मिथ्या अपने बारे में लड़के को सब बता देती है और लड़का उसे केहता है कि मुझे किसी भी बात से फरक नहीं पड़ता है क्यूंकि में तुम्हे समझता हूँ , तुम मुझे समझते हो , और हम एक दूसरे के लिए ही बने हैं , और दोनों अपने घर में बता देते हैं , मिथ्या अपने बारे में सब सच बताती है , और दोनों के घर में उसकी शादी की बातें शुरू हो जाती हैं , मिथ्या ने कभी भी ये नहीं जाना था कि जो अब तक बस वो सुनती आ रही थी वो बातें अब सच होने वाली है , वो लड़का जिसका नाम वंश था , वो कहता है कि सब मान गए हैं , बस एक ही बात सामने आ रही है , कि हमारी cast same नहीं है , तो अगर हम उस लड़की को लेकर आते हैं तो कहीं हमारा आना जाना बंद न हो जाये , वही बातें जो वंश की और मिथ्या के बीच पहले से हुई थी , और वंश ने खा था कि जब हम कभी इलाज करवाने जाते हैं तो हमारा इलाज करने वाला डॉक्टर कौनसी cast से है क्या वो हमारी ही जाति का है , क्या वो हमारे ही जैसा है , तभी हमारा इलाज कर सकता है , नहीं न हम बस ये देखते हैं कि कोई अच्छा डॉक्टर हमारा या हमारे मरीज का इलाज कर दे ,
जब हम पढ़ने लिखने जाते हैं तब क्या कोई ये पूछता है कि पढ़ाने वाला टीचर कौन है , जब सब्जी लेने जाते है तब नहीं पूछते कि तुम कोनसे धर्म से हो , और हम उनसे सब्जियां खरीदते हैं , बाहर रेस्त्रां में जाते समय जो खाना बनाता है , और सर्व करता है , हम तब भी नहीं पूछते कि तुम किस धर्म से हो ,जब सभी एक साथ मिलकर रहते हैं , एक दूसरे की जरूरत पड़ने पर एक दूसरे की मदद करते हैं तो शादी के समय हम ये जाति धर्म क्यों सामने लेकर आते हैं , क्यों हमारे मन में ऐसे लोगों का ख्याल आता है जो इन बातो को समझते नहीं है , और उन्हें समझाना पड़ता है ,
हम अक्सर उन्ही जोड़ों की बातें करते हैं जो अपना जीवन ख़ुशी से व्यतीत करते हैं और उनकी बुराइयां करते हैं जिनके बीच कोई प्यार नहीं होता झगड़े रहते हैं , तब हमेशा इंसान के नेचर के बारे में बात की जाती है , वो किस जाति से है किस से नहीं ये बातें तब भी नहीं की जाती फिर प्यार में कहाँ से ये बातें आने लगती है , मिथ्या उस लड़के को बहुत चाहती है इसलिए हर सवालों का जवाब देना पसंद करती है , लेकि बस वो उस लड़के का साथ चाहती है , कि वो क्या चाहता है उसके मन में मिथ्या के लिए क्या है ,
क्या वो भी उन्ही लोगों कि तरह अपनी सोच को शामिल करेगा जैसा समाज सोचता है या कुछ बदलने की कोशिश करेगा !
अगले दिन मिथ्या वंश को फ़ोन करती है और कहती है कि कोई बात नहीं शायद हमारे नसीब में एक होना नहीं है , तभी वंश कहता है कि आप ऐसा क्यों कह रहे हो , कोई कुछ भी कहे लेकिन मेने आपको पहले भी कहा था और अब भी कह रहा हूँ , कि में कभी साथ नहीं छोड़ता , और कोई कुछ भी कहे में ये सब नहीं मानता , और मेरे लिए ये जाति- धर्म मायने नहीं रखता , क्यूंकि इंसान कि असली पहचान उसके बेहेवियर से होती है , और मेने आपको जाना है आपके मन को जाना है , में आपका पूरा साथ दूंगा और आप को परेशान होने की जरूरत नहीं है , चाहे समाज कुछ भी कहे लेकिन में जो कहता हूँ वही करता हूँ , और में करूँगा ,
मिथ्या को ये सुनकर बहुत ख़ुशी होती है , और वो कहती है कि बस यही सुनना चाहती थी में , कि आप क्या सोचते हो और आप क्या कहते हो , आपकी इन्ही बातों को सुनकर मेरे मन ने आपको पसंद किया था , आपकी ईमानदारी , आपकी सोच , आपकी सादगी ने ही मेरे मन को जीत लिया था , अब चाहे दुनिया कुछ भी कहे , पर में आपके साथ खड़ी रहूंगी , में जानती हूँ कि सब कुछ आसान नहीं होता , हमे काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है , और कांटो भरे रास्ते पर चलने के बाद ही हमे फूलों भरा बगीचा मिलता है , माना कि मंजिल को पाना थोड़ा मुश्किल है लेकिन में जानती हूँ कि आपका साथ पाकर में हमेशा ही सही रास्ता चुनूंगी , और हमेशा ही आपका हाथ थामकर आपका साथ दूंगी , बिलकुल उसी तरह जिस तरह आप देते हो !!
मिथ्या कहती है कि हमारा मकसद सिर्फ एक दूसरे से प्यार कर एक हो जाना ही नहीं है , बल्कि समाज के बारे में भी सोचना है , लोगो की मदद करते समय हमे एक दूसरे का सपोर्ट मिल न कि कोई ऊँगली उठे कि तुम ऐसा क्यों क्र रहे हो , या कर रही हो , हम एक दूसरे के साथ मिलकर वो सब करना चाहते हैं जो अक्सर लोग सिर्फ सोचते हैं , और आगे नहीं बढ़ते और समाज से डर कर कुछ नहीं करते !
लेकिन हम एक होकर आगे बढ़ेंगे और एक दूसरे का साथ देकर लोगों की भी मदद करेंगे !!
ऐसी पढाई किस काम की जो हमे इंसानियत नहीं सिखाती , किसी कि मदद करना नहीं सिखाती , सबको सामान रखना नहीं सिखाती ,
जब हम अस्पताल जाते हैं तो ब्लड देते समय कोई हमारा धर्म क्यों नहीं पूछता , कौन हिन्दू है कौन मुसलमान है ये सब बाते कोई क्यों नहीं देखता क्यूंकि वहां इंसानियत को देखा जाता है , खून का रंग लाल ही होता है बस किसी इंसान की जान बचनी चाहिए !!
इस कहानी के माध्यम से में आपको यही सीख देना चाहती हूँ कि हम एक ऐसे समाज में रहते यहीं जहां इंसान को इंसान समझकर रहना है , जहां हर तरह का इंसान है , किसी भी जाति या धर्म का इंसान एक साथ रह सकता है , बल्कि इंसान का जो मन है वो अपना धर्म बदल भी सकता है , और अपना धर्म खुद से चुन भी सकता है ,
लड़की अपने मन से अपना जीवन साथी चुन सकती है , और लड़का अपना मन चाहा साथी चुन सकता है , और अगर कोई इंसानियत को आगे रखते हुए एक दूसरे को सम्मान देते हुए कोई कदम उठता है , और परिवार वालों को शामिल करता है तो वो व्यक्ति बहुत समझदारी से काम लेता है , न कि सिर्फ अपनी खुशियों को पाना चाहता है , अगर उसके मन में अपने प्यार को ही जीत देनी होती तो वो दोनों कैसे भी शादी करके अपना रह सकते है , लेकिन ये दोनों अपने समाज को भी एक सीख देना चाहते हैं और हमे ऐसे लोगों का सम्मान करना चाहिए न कि उन्हें गलत घोसित करना चाहिए !!
आपको ये कहानी किसी लगी आप कमेंट में जरूर बताएं
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