एक दिन बाघ में बैठी थी में ,

और सोचने लगी जो बीत रही है
ज़िंदगी वो किसी है ,
यहां वहां देखा लोगों से मिले बात
की तो जाना किसी है ज़िंदगी
सोच कर देखा कि जिंदगी केसी है।
जब जाना उसे तो पता लगा कि
सबकी ज़िन्दगी एक ही जैसी है
हर कोई दौड़ ही रहा है।
कुछ पाने को।
अब इसमें बात क्या है छुपाने को।
हां ज़िन्दगी ऐसी है।
कितने ही सपने बुनते है लोग ।
कितने ही ज़ख्म उभरते है
फिर भी मजा आता है जीने में !!
कितनी ही परेशानियों को
हंस कर टाल देते हैं हम
रुलाये जाए फिर भी
जरा सी बात पर मुस्कुराते हैं हम !!
कितने ही सपने बुनते है।
कितने ही ज़ख्म उभरते है।।
आँखों के सामने कितना कुछ होता हम देखते है
किसी को खुश तो किसी को रोते हुए देखते है !!
फिर भी मजा आता है। जीने में ।
हंस कर टाल देते हैं जैसे।।
अपनी मंज़िल को पाने का चस्का है साहब
कोई गरीब तो कोई अमीरो की महफ़िल में बैठ कर
सोचता है , कि एक दिन तो हम भी कहीं पहुंचेंगे !!
ज़िंदगी का सफर तो बस यूँ ही कट जाना है
सब छोड़ कर एक दिन मिटटी में मिल जाना है
यहाँ पता नहीं कौन अपना है ,
और कौन बेगाना है !!
ज़िंदगी में कौन आता है कब चला जाता है
पता ही नहीं चलता है,
बस एक झटके में सब
खतम हो जाता है
बहुत देखा बहुत लोगो को जाना,
और सोचा कि कुछ अलग निकल कर आये,
कुछ खास बनकर आये
पर कुछ हासिल नहीं था
बस चारों तरफ वही था !!
हर कोई दौड़ ही रहा था ।
कुछ पाने को !!
जब कुरेद कर देखा बचपन जवानी बुढ़ापे को,
तो सबसे प्यारा बचपन था हमारा।
न कोई सिकवा था न कोई शिकायत।।
बस था तो एक दूसरे से रूठ जाना
फिर लालच देकर फिरसे दोस्त बन जाना।।
वही खेल कंचो का , गिल्ली डंडे का,
और लट्टू का चलाना ,
आँख मिचोली खेल कर सबको धप्पा करना
गुड़िया गुड्डे की शादी का
वही सब खेल पुराना
सबकी ज़िन्दगी के हिस्से का था खज़ाना!
न कोई था रिस्ता निभाना
न कोई दर्द छुपाना!!
बस आँखों में आंसू लिए रोते रोते
सब कुछ मम्मी को बताना ।
माँ का वो प्यार से सहलाना ।।
सोच कर देखा कि जिंदगी केसी है।
जब जाना उसे तो पता लगा
कि सबकी ज़िन्दगी एक ही जैसी है!!
सोच कर देखा कि जिंदगी केसी है।
जब जाना उसे तो पता लगा कि
सबकी ज़िन्दगी एक ही जैसी है!!
सोमी
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