उसके मन की क्या कहूं

उसके मन की क्या कहूं

उसके मन की क्या कहु ,में ही ऐसी विरह में खोई थी
कि उसकी तुलना औरों से करने लगी थी
में दिखा रही थी उसको लोगों के मन का मेल
और वो मुझे मेरे मन की छवि , बता गया !!
कहने लगा जरूरत नहीं कुछ दिखाने की
जरूरत नहीं कुछ भी बताने की क्यूंकि  ,
तुम्हारी पहचान तुम्हारे  मन से दिखती है
जो गहराई  तुम्हारे मन की है , मुझे बाहर से देखने की
जरूरत नहीं, मुझे तुम्हे कुरेदने की जरूरत नहीं !

क्या बताऊँ उसके मन की ,
मेरे दिल को वो अपनी बातों से ही जीत ले गया ,
बातों ही बातों में इशारे से सब कुछ कह देता है
मेरी आँखों को पढ़कर मेरी खमोशी को जान लेता है वो !!

उसके मन की क्या कहु ,
हर गम में भी मुस्कुरा लेता है वो
नहीं चलाता आज की दुनिया में रहकर भी फेसबुक
इंस्टा , फिर भी सारी दुनिया की नॉलेज
से वाकिफ कराता है मुझे ,
क्या सही है क्या गलत है
सब बताता है मुझे !!

क्या कहु उसके मन की
कहता है सब कुछ पर शर्माता बहुत है
यही बात को मन लुभाता बहुत है
उसकी बातों में इतनी मिठास है कि
मेरे गुस्से को भी शांत करा देता है
और में न भी मानु , पर दिल मान जाता है

क्या कहु उसके मन की
अपनी मीठी बातों से दिल में जगह बना लेता है वो!!

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