अंजाना सा एहसास
में उससे कभी मिली नहीं फिर भी लगता है ,
जैसे उसे बहुत करीबी से जानती हु,
कभी देखा नहीं , पर लगता है ,
जैसे में उसे पहचानती हु ,
ख़ामोशी का लम्हा है ,
इशारों में जैसे बात रोज करती हूँ उससे ,
कौन है वो कहाँ है वो ,
दूर है कहीं या आस पास यही कहीं है वो ,
बातों से नहीं बस लफ्जों में इजहार करती हूँ ,
लगता है यूँ जैसे बहुत प्यार करती हूँ,
न जाने क्यों बस उसका इंतज़ार करती हूँ ,
ये चाहत किसी है , ये इशारा केसा है ,
नहीं जानती पर हर इशारा लगता है
जैसे में इसे बहुत करीबी से जानती हूँ !!
में उससे कभी मिली नहीं फिर भी लगता है ,
जैसे उसे बहुत करीबी से जानती हु,
कभी देखा नहीं , पर लगता है ,
जैसे में उसे पहचानती हु ,
जिसे कभी छुआ नहीं ,
पर फिर भी उसे महसूस करती हूँ ,
एक अजीब सा रिश्ता हो जैसे ,
कोई पास आ रहा हो ऐसे ,
खुआब हर पल में बुनती हूँ !
किसी चाहत है ये , केसा है ये एहसास
लगता है जैसे आने वाला है कोई मेरे पास ,
जानती हूँ , पहचानती हूँ
या बस खुदसे अनजान में बनती हूँ !!
रोज एक नया खुआब हर पल में बुनती हूँ !!
मेरी बातों में वो रोज आता है ,
मेरे लबों को फूलों की पंखुड़ियों की तरह छू जाता है !!
सोचती हूँ ये किसी महक वो दे जाता है ,
जो मेरे दिल में एहसास को जगाता है !
मेरे मन को महकाता है !!
में उससे कभी मिली नहीं फिर भी लगता है ,
जैसे उसे बहुत करीबी से जानती हु, !!
Sheetal Singh
Post a Comment