तन्हा सी मोहब्बत

बड़ी अजीब मुलाकातें थी हमारी।
वो मतलब से मिलते थे।
ओर हमे मिलने से मतलब था।।

कभी जाना ही नही मुझे
की कितनी चाहत थी उनसे।
कभी पहचाना ही नही मुझे।।

 रब से की इबादत थी सिर्फ उनके लिए।
ख़्वाबों की खुआहिस थी उनके लिये।।

क्यों आइने में वो चेहरा फिर दिखता ही नही।
खुदको देखती हूं जब भी तो एक मायूसी नजर आती है।।

क्यों अब ये हँसी फिर से खिलती नही।
क्यों वो हँसी वादिया फिर से मिलती नही।।

क्यों वो इतने दूर हुए।
की हम भी मिलने को मजबूर हुए।।

क्यों ये दिल फिरसे धड़कता नही।
क्यों ये तन्हाई भरी रात गुजरती नही।।

क्यों मुझे मेरी चाहत मिलती नही।।
क्यों मुझे मेरी चाहत मिलती नही।।

बड़ी अजीब मुलाकातें थी हमारी।
वो मतलब से मिलते थे।
ओर हमे मिलने से मतलब था।।।      


                                                                          सोमी

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