प्यार कभी न एक तरफा होता है न कभी होगा

प्यार कभी न एक तरफा होता है न कभी होगा
दो रूपों  के एक मिलन की जुड़वाँ पैदाइश है ये
ये अकेला जी नहीं सकता!
 जीता है तो दो लोगों में
मरता है तो तुम मरते हो
प्यार एक बहता दरिया है !
कोई झील नहीं जिसको किनारे बाँध कर बैठे रहते है
सागर भी नहीं जिसका किनारा होता नहीं !!
बस दरिया है जो बहता है ,
दरिया जैसे चढ़ जाता है ,ढल जाता है !
चढ़ना उतरना प्यार में रुक्सत होता है!!
पानी की आदत है  ऊपर से नीचे की दिशा में बहना ,
नीचे से फिर भागकर सूरत के  ऊपर उठना ,
बादल बन आकाश में बहना ,!!
कांपने लगता है ,जब शीतल हवाएं छेड़े ,
बून्द बून्द बरस जाता है !!
प्यार एक जिस्म की साज में बजती गूंज नहीं है
 ,न मंदिर की आरती है न पूजा है ,
प्यार न कोई लालच है ,न कोई नाम है,
प्यार न एलान है न एहसान है ,
लाभ न हानि है कोई
न कोई जंग की जीत है ये ,
न हुनर है ,न इनाम ,न रिवाज है, न कोई रीत है ये
,ये रेहम नहीं ये,  दान नहीं
ये हम दर्दी की तान  नहीं !!
ये बीज नहीं जो बीत सके खुशबू है मगर
ये खुशबू की पहचान नहीं ,!!
दर्द, दिलासे, शक, विश्वास ,जूनून और होशो आवाज और एहसासो की कोख से पैदा हुआ एक रिस्ता
है
या फिर सम्बन्ध है .
दो नामो का ,दो लबो का ,दो बातो का ,पहचानो का ,
पैदा होता है ,बढ़ता है पर बूढ़ा होता नहीं
मिटटी में पले.एक दर्द की ठंडी धुप तले जड़ की तरह ,
पौधे की तरह ...कटती है मगर ये फटती नहीं !!
,मिट्टी और पानी, रोशनी, और  मछली की  तरह जब बीज की आँख  में झाकते है ..
तब पौधा गर्दन ऊँची  करके देखता है और सोचता है, 
पौधे के हर पत्ते पत्ते पर प्रश्न है ,की किस मिटटी की कोख थी वो,किस मौसम  ने पाला पोसा और सूरज ने छिड़काव किया ,कैसे मिट गयी साखे उसकी कुछ पत्तो के चहरे ऊपर है आकाश की जाने तख्ते है ,
कुछ पत्ते लटके हुए पूछते है मिटटी से की तुम हमसे हो या हम तुमसे तो नहीं ,
प्यार तो हवा का वो झोका है जो हर किसी को छूकर गुजरता है .एक ऐसा एहसास है जिसे महसूस करना ही खूबसूरत लम्हा है ,और सबके लबो पर आने वाली मुस्कान है ये,





ये दिल से है धड़कन से है ,इससे बच सकता कोई भी नहीं ..प्यार एक प्रश्न भी है तो एक उत्तर भी है .....सोमी .


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