एक परिंदा
एक परिंदा जो बिछड़ा हुआ था ,
वो रोज देखती थी आसमान में, दूसरे पंछियों को उड़ता हुआ , कभी इस गगन से उस गगन को जाते हुए,
हर नदी हर राह को छूना चाहती थी , तिनके का सहारा नही आसमान चाहती थी ,वो भी उड़ना चाहती थी , वो रोज देखती थी आसमान की और परिंदों को आसमान में उड़ता देख झलकते थे आंसू उसकी आंखों में , क्योंकि उड़ना चाहती थी वो भी आसमान में,नहीं रहना था उसे किसी पिंजरे में बंद , हर बार पंख फैलाती पर गिर जाती और रो देती , पंखों की पहचान न थी उसे पर एहसास बहुत गहरे थे,
सपनो की उड़ान बहुत ज्यादा थी , ओर जज्बातों के कई पहरे थे , उसके होंसले ही उसकी पहचान थी , वो तो दुनिया से अनजान थी , एक दिन उसके सपनो में एक परी आयी , ओर उससे पूछा कि तुम क्या चाहती हो , उसने कहा में आसमान में उड़ना चाहती हूं , सबके साथ मिलकर चलना चाहती हूं , अपने पंखों को आसमान में फैलाना चाहती हूं , परी ने सीधा सा जवाब दिया कि तुम्हारे पंख लग जाएं तो तुम उड़ने लगोगी , हर सपनो को पूरा करोगी , बहुत से परिंदे है आसमान में , पर फिर भी उनकी पहचान कुछ नही , उनमे होंसले नही जज्बे नही , अगर तुम भी उनके साथ उड़ना चाहती हो तो खो जाओगी तुम भी उस भीड़ भरे परिंदों के बीच , खो जाओगी तुम भी आसमान में , पर जो भीड़ से अलग चले पहचान उसी की होती है , तुम्हे तो होंसले की उड़ान भरनी है , पहचान बनानी है ,किसी पिंजरे में नही , तुम्हे तो आसमान में अपनी जमीन बनानी है ।।
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